राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी,जोधपुर
(चौपासनी शिक्षा समिति एवं मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट द्वारा संचालित)
संक्षिप्त परिचय
राजस्थान के अमूल्य धरोहर का वैज्ञानिक एवं प्रमाणिक अध्ययन व प्राचीन सामग्री की सुरक्षा के उद्देष्य से इस संस्थान की स्थापना चौपासनी शिक्षा समिति ने 22 अगस्त, 1955 में की थी। इस संस्थान के प्रथम संस्थापक निदेशक (1955-1993) डा. नारायणसिंह भाटी रहे। यह राजस्थानी भाषा, साहित्य व मध्यकालीन भारतीय इतिहास में पीएच.डी. व डी.लिट् की उपाधि हेतु जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर से मान्यता प्राप्त शोध केन्द्र है।
संस्थान में संग्रहीत 16,798 ग्रन्थों (Old Manuscripts) के साथ ही शाहपुरा रियासत (मेवाड़) का रिकार्ड भी संग्रहीत है। संस्थान में पूर्व निदेशक(1997-2010) डा. हुकमसिंह भाटी ने ठिकाणा खेजड़ला, कोरणा, बीकमकोर, बागावास, रोहिट व सुरायता छः ठिकाणों की 1,581 बहियां का संग्रह किया। इसके साथ ही संस्थान के संग्रह में लगभग 350 प्राचीन चित्र (Miniature Painting) हैं ,जो अधिकांश जोधपुर शैली के है, जिनमें ऐतिहासिक पुरूषों राव अमरसिंह, वीरवर उम्मेदसिंह सिसोदिया, महाराजा मानसिंह, वीर दुर्गादास राठौड़, महाराजा अजीतसिंह, महाराणा भीमसिंह, बीकानेर के महाराजाओं के चित्र, राग रागनिया, बारह मासा, उत्सव, अवतार आदि हैं। इसके अतिरिक्त संस्थान में लगभग 8,000 सन्दर्भ पुस्तकों (Reference Books) का भी संग्रह है।
पता – राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी स्कूल परिसर, जोधपुर, 342008
सम्पर्क – 77-42-7 48-873, 92-51-6 25-388
ई-मेल – rajasthanishodhsansthan@gmail.com
Rajasthan has been the “heart-land” of India there are many glorious legends of sacrifice, virility, devotion and they glorified Indian history on one hand and fascinated audiences world over through differing aspects of cultural and performing arts. Although much of its literary treasure was destroyed and plundered during different invasions, some of the pricelessly valuable manuscripts have been salvaged and preserved. Intensive research, procurement, classification and editing has gone into making this significant heritage available for posterity and prospective scholars.
For the specific purpose of promoting research into the manuscripts available. Rajasthani Shodh Sansthan was established in 1955. Dr. Narain Singh Bhati (1955-1993) was assigned the task of its establishment and structuring it. He gave it the present status and led research from the front. As on date this institute has a national reputation and is a research centre (recognized by Jai Narain Vyas University, Jodhpur for doctoral and post doctoral research in Rajasthani Language, Literature and Medieval History.